Wednesday, July 10, 2013

बिचल्ली शहर

सिरौटे हावाले
हैसियत उठायो मझेरीबाट
र, लेराइ छाड्दियो
'बीच शहरमा'
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देख्दैछु
बुद्ध र आनी
वन्न सक्ने नानीहरू
टुहुरा भइ
गल्लितिर भौतारिएका
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वागमतिसँगै
रहर बगे तराइतिर
शहर कहिल्यै नफर्किने गरि
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उद्देश्य छुन
उड्नु अघि
बारिका कान्ला नाघ्दै
अक्षरका कक्षा छाडि
कुद्देका क्षण र ल्याकत सम्झिदैछु
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आफै;
आर्जित ल्याकतको महत्व
हैसियत बिर्सिनेलाइ के'था ?
टुप्पो चुम्नेले  
कहिल्य
छाड्दैन धरातल 
@ सन्तोष पौडेल - सन्तु

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